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पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा ।

न सूक्तं नापि ध्यानम् च न न्यासो न च वार्चनम् ॥ २ ॥

पाठमात्रेण संसिद्ध्येत् कुञ्जिकास्तोत्रमुत्तमम् ॥ ४ ॥

श्री अन्नपूर्णा अष्टोत्तर शतनामावलिः

नमः कैटभ हारिण्यै, नमस्ते महिषार्दिनि।।

दकारादि श्री दुर्गा सहस्र नाम स्तोत्रम्

देवी वैभवाश्चर्य अष्टोत्तर शत नाम स्तोत्रम्

ओं अस्य श्री कुञ्जिका स्तोत्रमन्त्रस्य सदाशिव ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, श्रीत्रिगुणात्मिका देवता, ओं ऐं बीजं, ओं ह्रीं शक्तिः, ओं क्लीं कीलकम्, मम सर्वाभीष्टसिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः ।

देवी माहात्म्यं दुर्गा द्वात्रिंशन्नामावलि

Salutations for the one particular that is offended, salutations into the killer of Madhu, Salutations to at least one who was victorious over Kaitabha, salutations towards the killer of Mahisha  

क्रां क्रीं क्रूं कालिका देवि शां शीं शूं मे शुभं कुरु ।।

देवी माहात्म्यं दुर्गा सप्तशति त्रयोदशोऽध्यायः

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सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ परम कल्याणकारी है। सिद्ध कुंजिका स्तोत्र आपके जीवन की समस्याओं और विघ्नों को दूर करने के लिए एक शक्तिशाली उपाय है। मां दुर्गा के इस स्तोत्र का जो मनुष्य विषम परिस्थितियों में वाचन करता है, उसके समस्त कष्टों का अंत होता है। प्रस्तुत है श्रीरुद्रयामल के गौरीतंत्र में वर्णित सिद्ध कुंजिका स्तोत्र। सिद्ध कुंजिका स्तोत्र के लाभ

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